सब अछा ही था जब मैं मुड़ा था यहाँ से, कुछ था जो फिर भी जुड़ा था यहाँ से। माँ ने कहा अपना ख्याल रखना बेटा, पापा ने भी हंस के विदा किया मुझे। पापा अपने ही दिया मेरे सपनो का जहाँ, आप ही तो है मेरे ज़मीनऔर आसमान। ख़ुशी की लहर थी मेरी तरक़्की पे घर में, याद आती थी उनकी उस अनजाने शहर में। पर मालूम था पापा संभाल लेंगें सब एक पहर में, माँ-पापा ही तो सहारा है एक दुसरे का ज़िन्दगी के इस सफर में। कुछ ही दीन बीते थे, खबर आयी की पापा ठीक नही है, सुनते ही लगा जैसे सर से आसमान और पैरों से जमीं छीन गयी, हो भी क्यूँ ना, क्यूंकि आप ही तो हैं मेरे पैरों की जमीन और सिर का आसमान। वापस आया तो वक़्त ने सबसे पहले पापा का मुरझाया हुआ चहरा दिखया, कमजोर हो गए थे वो फिर भी उनको मुस्कुराते हुए पाया, माँ रोक ना सकी खुद को मुझे देख कर, दिल में थमा सैलाब उमड़ पड़ा, आखिर एक मैं ही तो उम्मीद था उनकी, आँखों में बसा दरिया बिखर पड़ा। हिम्मत बना माँ की, सहारा बना पापा का, सोच कर की वक़्त ले रहा है इम्तेहान, पापा आप ही तो है मेरे पैरों को जमीन और सिर का आसमान। आहिस्ता आहिस्ता सब ठीक होने लगा, एक बार फिर बुरे वक़्त के बाद अच्छे वक़्त का मंज़र दिखने लगा, अचानक ही सब छीन गया और ना रही मेरे पैरों तले ज़मीन और ना सर पे आसमान, ना माँ को कोई उम्मीद रही ना मुझे कोई अरमान। ना फिर आँखों का दरिया थमा, ना दिल का सैलाब, पापा आप बस पीछे छोड गये यादों का एक खली मकान, आप ही तो थे मेरे पैरों की ज़मीन और सर का आसमान। ~Jyoti Yadav Copyright ©Jyoti Yadav. All rights reserved. ~Jyoti Yadav
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