आज कल मेरा मन अकेले राहों पे चलने को करता है न तकलीफ है अकेलेपन की न ही कही खो जाने से डर लगता है। ना दर्द होता है ना ही कोई आह निकलती है बस मन में जलते अरमानो से धुआं कही उठता है। उलझे से कुछ ख्याल हैं बदले से कुछ हाल है ना खुद कुछ समझने को ओर ना किसी को समझाने को मन करता है। आजकल मन मेरा अकेले राहों पे चलने को करता है। ना उम्मीद किसी के साथ की ना ख़्वाहिश किसी के हाथ की आदत नही है अब रोशनी की बस अंधेरो में खो जाने को मन करता है। आजकल मन मेरा अकेले राहों पे चलने को करता है। रास्ते मेरे हमसफर बन गए हवाये मेरी सहेली हो गई ना अब किसी इंसान से जी लगाने की मन करता है। आजकल मन मेरा अकेले रास्तों पे चलने को करता है। जी करता है बह जाऊ दरिया के संग ओर लौट के ना आऊ कभी कल कल करती लहरों के संग शीतल होने का मन करता है। आजकल मन मेरा अकेले रास्तों पे चलने को करता है। मिल जाऊ इन हवाओं में समा जाऊ इन फ़िज़ाओं में इन वादियों में घुल जाने को मन करता है। आजकल मेरा मन अकेले रास्तों पे चलने को करता है। ~Jyoti Yadav
Wah…..sppechless…too good
Ji man to kabhi kabhi sabka aisa hi krta hai par jo maza khud k sath hai na wo kisi ar k sath nhi 👌🏻👌🏻👌🏻
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Thanks
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Bahut khub dard se bhari……
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Thanks
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